Indian Firms Bid for Desi 5th-Gen Fighter Jet with DRDO

Desi 5th-Gen Fighter: Indian Firms Bid for AMCA; Pillai Panel to Evaluate Submissions

Indian Firms Bid for Desi 5th-Gen Fighter Jet with DRDO

भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एक बड़ा कदम उठाया है—देश की प्रमुख कंपनियों ने Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA) कार्यक्रम के तहत भारत की अपनी पाँचवीं पीढ़ी की लड़ाकू विमान बनाने की बोली लगाई है। एक पूर्व ब्रह्मोस प्रमुख अ. शिवथानु पिल्लै की अध्यक्षता में बने पैनल अब इन निविदाओं का मूल्यांकन करेगा। आइए विस्तार से जानें इस प्रोजेक्ट की दिशा, चुनौतियाँ और महत्व।

1. AMCA क्या है?

AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) भारत का एक महत्वाकांक्षी प्रोग्राम है, जिसका उद्देश्य एक पाँचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान विकसित करना है। इसके अंतर्गत विमान को स्टेल्थ तकनीक, अंदरूनी हथियार उद्यान (weapons bay), स्वरूप में हवा की बेहतर थ्रस्ट, और अत्याधुनिक सेंसर एवं एविओनिक्स से लैस किया जाएगा।

2. कौन-कौन सी कंपनियाँ बोली में शामिल हैं?

  • Larsen & Toubro (L&T), जो कि भारत की बड़ी इंजीनियरिंग एवं वायु मुकाबला ढाँचे बनाने वाली कंपनी है, BEL (Bharat Electronics Limited) के साथ साझेदारी में बोली लगा रही है।
  • Bharat Earth Movers Limited (BEML) ने भी निजी क्षेत्र की अन्य कंपनियों के साथ मिलकर बोली लगाई है।
  • Hindustan Aeronautics Limited (HAL), जो कि एयरोस्पेस क्षेत्र की सुविधा एवं उत्पादन में भारत की प्रमुख कंपनी है, ने अपनी बोली दाख़िल की है।
  • अन्य कई भारतीय निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ भी इस प्रतियोगिता में शामिल हैं।

3. बजट और समय सीमा

इस डिजाइन एवं विकास परियोजना की अनुमानित लागत लगभग ₹15,000 करोड़ है। निर्माताओं को यह भी बताया गया है कि जब प्रोटोटाइप तैयार हो जाएँ, तब उत्पादन का दायरा बढ़ेगा, जिसमें लगभग 125 विमान बनाए जाने की संभावना है। पूरा AMCA सिस्टम उत्पादन हेतु सात स्क्वाड्रन (squadrons) तक के विमान बनाने का अनुमान है, जिसका मूल्य लगभग ₹2 लाख करोड़ के आसपास होगा।

4. मूल्यांकन पैनल और निर्णय प्रक्रिया

बोली दाख़िल होने की अंतिम तिथि 30 सितंबर, 2025 थी। इन निविदाओं का मूल्यांकन एक विशेष समिति करेगी जिसकी अध्यक्षता पूर्व ब्रह्मोस प्रमुख अ. शिवथानु पिल्लै कर रहे हैं। यह पैनल तकनीकी क्षमता, वित्तीय शक्ति, अनुभव, रिसर्च एवं विकास (R&D) क्षमताओं आदि कई घटकों को ध्यान में रखकर बोलीयों की समीक्षा करेगा, और अपने सुझाव रक्षा मंत्रालय को सौंपेगा।

5. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी

यह पहला अवसर है जब AMCA जैसे उच्च स्तरीय लड़ाकू विमान कार्यक्रम में निजी क्षेत्र को इतनी बड़ी भूमिका दी जा रही है। पिछली परियोजनाएँ जैसे कि LCA (Light Combat Aircraft) में भी कुछ निजी कंपनियाँ हिस्सेदारी लेती थीं, लेकिन इस प्रोजेक्ट में निजी और सार्वजनिक दोनों सेक्टरों को बराबर अवसर दिए गए हैं। HAL अकेले नहीं, बल्कि संभवतः किसी निजी कंपनी के साथ गठबंधन कर बोली लगाएगा।

6. लक्ष्य और समय-रेखा

प्रोटोटाइप निर्माण और उड़ान: अनुमान है कि AMCA का पहला प्रोटोटाइप 2029 या उसके बाद उड़ान भरेगा।
उत्पादन एवं इंडक्शन: 2034-35 के आसपास विमान भारतीय वायुसेना में शामिल होना प्रारंभ होगा।

7. चुनौतियाँ और विचारणीय पहलू

  • तकनीकी जटिलताएँ: स्टेल्थ डिज़ाइन (छुपे स्वरूप), अंदरूनी हथियार रखने की व्यवस्था, उन्नत इंजन, एयर-सूपरक्रूज़ क्षमता आदि जैसी विशेषताएँ विकसित करना आसान नहीं है।
  • इंजन विकास: भारत को पहले से ही इंजन प्रौद्योगिकी में चुनौतियाँ झेलनी पड़ी हैं। कैसे उच्च थ्रस्ट / वजन अनुपात वाले इंजन विकसित किए जाएँ, ये प्रमुख मुद्दा है।
  • समय सीमा का दबाव: प्रोटोटाइप बनाकर उड़ान भरने से लेकर बड़े पैमाने पर उत्पादन और वायुसेना में शामिल करने तक, ये प्रक्रिया वर्षों लेगी। किसी भी देरी से बजट बढ़ सकता है और रणनीतिक जरूरतों पर असर होगा।
  • आर्थिक एवं वित्तीय संसाधन: ₹15,000 करोड़ डिजाइन-विकास के लिए अपेक्षित है, लेकिन उत्पादन के लिए इसका दायरा बहुत बड़ा है (लगभग ₹2 लाख करोड़)। इसके प्रबंधन में पारदर्शिता, लागत नियंत्रण और संसाधन प्रबंधन अहम होगा।
  • मानव संसाधन और शोध अधोसंरचना: अनुसंधान एवं विकास, परीक्षण केंद्र, सामग्री विज्ञान, कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग आदि में पर्याप्त विशेषज्ञता एवं उपकरण होना अनिवार्य है।

8. महत्व और रणनीतिक प्रभाव

रक्षा आत्मनिर्भरता: AMCA प्रोजेक्ट “Make in India” एवं “Atmanirbhar Bharat” की दिशा में एक बड़ा कदम है। विदेशी निर्भरता कम होगी।
औद्योगिक विकास: निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा, आपूर्ति श्रृंखला विकसित होगी, माॅड्यूल व उप-तंत्र बनाने वाली कंपनियों को अवसर मिलेंगे।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विदेशी साझेदारों जैसे इंजन बनाने वालों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की संभावनाएँ हैं, जो कि भविष्य में अन्य रक्षा एवं नागरिक प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों में काम आएँगी।
क्षेत्रीय एवं रणनीतिक संतुलन: आस-पास के देशों द्वारा भी उन्नत विमान विकसित किए जा रहे हैं; ऐसे में भारत अपनी वायु शक्ति को आधुनिक बनाए रखने के लिए इस तरह के कार्यक्रम आवश्यक है।

9. निष्कर्ष

AMCA प्रोजेक्ट महज़ एक विमान बनाने से कहीं ज्यादा है—यह भारत की तकनीकी, आर्थिक और सामरिक क्षमता की परीक्षा है। यदि पैनल चयन, अनुसंधान-विकास और उत्पादन प्रक्रिया सुचारू रूप से चले, तो भारत न केवल अपनी लड़ाकू विमान क्षमता बढ़ाएगा बल्कि रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में विश्वस्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करेगा। यह प्रोजेक्ट आने वाले दशकों में भारतीय वायुसेना की ताकत और राष्ट्र की सुरक्षा की आधारशिला बनेगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post